श्री राम सेवा समिति एवं कानपुर प्रेस क्लब के तत्वाधान मे मालवीय पार्क हरवंश मोहाल में चल रही श्री मद्भागवत कथा का द्वितीय दिवस का प्रारंभ कथा व्यास पंडित दीपक कृष्ण जी महाराज ने मंगलाचरण से किया उन्होंने कहा कि जीवन में सर्वाधिक महत्वपूर्ण हमारे आचरण ही होते हैं भगवान अपने भक्त का कल्याण करने के लिए किसी भी रूप में प्रकट हो जाते हैं बस हमें अपने भगवान के ऊपर पूर्ण समर्पण होना चाहिए हमारे शास्त्रों में कामना के अनुसार देवताओं का वर्णन किया गया है जिसके मन में जो कामना हो उसे उसी देवता की पूजा करनी चाहिए जैसे जिसके मन में विद्या प्राप्ति की इच्छा हो उसे भगवान शंकर का पूजन करना चाहिए जिसके मन में धन प्राप्ति की इच्छा हो उसे माया देवी का पूजन करना चाहिए जिसे सुंदर पत्नी की कामना हो उसे उर्वशी देवी की साधना करनी चाहिए राजा परीक्षित के द्वारा अज्ञानवश ही महात्मा शमीक का अपमान हो गया जिस कारण उनके पुत्र श्रंगी ऋषि के द्वारा उन्हें 7 दिन में मृत्यु का श्राप दे दिया गया जब यह समाचार राजा परीक्षित को प्राप्त हुआ तो वह अपना राज पाठ छोड़कर गंगा के किनारे आ गए जहां उन्हें शुकदेव महाराज का दर्शन हुआ और शुकदेव जी के द्वारा उन्हें श्रीमद् भागवत कथा का ज्ञान कराया गया जीव को जीवन मुक्त आनंद का अनुभव भगवान की कथा के द्वारा ही हो सकता है जिसे जीवन जीने की कला सीखनी हो उसे श्री रामचरितमानस का श्रवण करना चाहिए और जिसे अपनी मृत्यु सुधारनी हो उसे श्रीमद् भागवत कथा सुननी चाहिए कथा सुनने का भी विधान हमारे शास्त्रों में बताया गया पहले आसन को जीतो फिर श्वास को जीतो फिर संग को जीतो और फिर अपनी इंद्रियों को जीतकर मन को भगवान में लगाकर कथा श्रवण करी जाए तो उसे यह कथा 7 दिन में ही मुक्त कर सकती है । विदुर जी की कथा के अंतर्गत बताया गया कि भगवान ने विदुरानी के प्रेम में छिड़कों का भोग लगाया भगवान भाव के भूखे हैं और भगवान को भक्ति श्रद्धा भाव से जो भी समर्पित करता है भगवान उसे अवश्य स्वीकार करते हैं सृष्टि वर्णन के अंतर्गत जब भगवान के मन में एक से अनेक होने की इच्छा हुई तब भगवान के नाभि प्रदेश से एक कमल की उत्पत्ति हुई और उस पर ब्रह्मा जी प्रकट हुए ब्रह्मा जी को जब भगवान नारायण ने सृष्टि करने का कार्य सौंपा तो ब्रह्मा जी ने सर्वप्रथम सनतकुमारो को उत्पन्न किया जिनके द्वारा सृष्टि कार्य करने से मना कर दिया गया तब ब्रह्मा जी ने अपने 10 मानस पुत्रों को उत्पन्न किया लेकिन फिर भी सृष्टि का कार्य आगे नहीं बढ़ सका तब पुत्रों के समझाने पर ब्रह्मा जी ने मनु और शतरूपा को उत्पन्न किया जिनके द्वारा मैथुन धर्म से सृष्टि का विस्तार हुआ आज मनु की संतान होने के कारण ही हम सब मनुष्य कहे जाते हैं मनु जी ने तीन पुत्रियां आकूति, देवहूति और प्रसूति तथा दो पुत्र प्रियव्रत और उत्तानपाद को उत्पन्न किया मनु की बेटी आकूति का विवाह रुचि प्रजापति जी से देवहूती का विवाह कर्दम जी से और प्रसूति का विवाह दक्ष प्रजापति जी के साथ संपन्न हुआ दक्ष और प्रसूति के घर में 16 कन्याओं का जन्म हुआ जिनमें से 13 कन्याओं का विवाह धर्म देवता के साथ स्वाहा नाम की कन्या का विवाह अग्नि देवता के साथ स्वधा नाम की कन्या का विवाह पितरों के स्वामी अर्यमा जी के साथ और सबसे छोटी सती का विवाह भगवान शंकर के साथ संपन्न हुआ जब दक्ष को प्रजापति का पद प्राप्त हुआ तो एक बार उनके द्वारा भगवान शिव का अपमान हो गया और भगवान शंकर को नीचा दिखाने के लिए दक्ष ने यज्ञ किया और इस यज्ञ में भगवान शिव का स्थान नहीं दिया जब सती मैया ने जाकर इस यज्ञ का दर्शन किया तो पति का अपमान होता देख उन्होंने अपने शरीर का त्याग कर दिया और दूसरे जन्म में हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में जन्म लेकर घोर तपस्या करी और भगवान शंकर को पति रूप में पुनः प्राप्त किया इस अवसर पर श्री राम सेवा समिति के प्रदेश अध्यक्ष श्री मनोज बाजपेई********** आदि लोग उपस्थित रहे
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