बुधवार, 3 फ़रवरी 2021

डीजल पेट्रोल के दामों में बढ़ोतरी के खिलाफ एस.यू.सी.आई (कम्युनिस्ट) पार्टी ने किया विरोध प्रदर्शन

अंकित दुबे, ब्यूरो प्रमुख, जौनपुर|

बदलापुर| डीजल, पेट्रोल, रसोई गैस व अन्य आवश्यक वस्तुओं के दामों में वृद्धि तथा जन विरोधी केन्द्रीय बजट के विरोध में एस.यू.सी.आई (सी) पार्टी के द्वारा आज देशव्यापी प्रतिवाद दिवस आयोजित किया गया। इस अवसर पर पार्टी की तरफ से बदलापुर क्षेत्र के ढेमा मोड़, खजुरन तिराहा पर भी विरोध प्रदर्शन किया गया। पार्टी के जौनपुर जिला सचिव कामरेड रविशंकर मौर्य ने कहा कि, सरकार ने केंद्रीय बजट 2021 के द्वारा आम आदमी के किसी एक भी मुद्दे पर तवज्जो देने के बजाय मुकम्मल निजीकरण का रोडमैप तैयार किया है। उन्होंने मांग किया कि डीजल पेट्रोल व रसोई गैस के दाम आधे किये जाए। सार्वजनिक क्षेत्रों का निजीकरण बंद किया जाए। किसान विरोधी काले कानूनों को रद्द किया जाए। इस अवसर पर हीरालाल गुप्ता, मिथिलेश कुमार मौर्य, अशोक कुमार खरवार, दिलीप कुमार, दिनेशकान्त मौर्य, राजबहादुर मौर्य, विजय प्रकाश गुप्त, राजेंद्र प्रसाद तिवारी, मुहम्मद शमीम, रामसिंगार दूबे, रामप्यारे एडवोकेट, रामदेव मौर्य, राधेश्याम चौबे, नन्हकूराम, मीता, शेखर आदि मौजूद रहे।

वंही प्रदर्शन में वक्ताओं ने कहा कि, "जब देश के आम लोग एक तरफ निरंतर बढ़ती आर्थिक बदहाली से और दूसरी तरफ महामारी की मार से त्रस्त हैं, अपनी गुजर-बसर के लिए उन्हें राजकोषीय अनुदान और अन्य आवश्यक वित्तीय सहायता की निहायत बेताबी से बड़ी भारी जरूरत है, तब बीजेपी की वित्त मंत्री ने विकराल रूप लेती बेरोजगारी, आसमान छूती महंगाई, नौकरियों की बढ़ती हानि, धड़ाधड़ हो रही कारखानेबंदी, ईंधन तेल के दामों में बेतहाशा वृद्धि , किसानों को उनकी उपज का लाभकारी मूल्य न मिल पाने आदि उनके जीवन की किसी एक भी ज्वलंत  समस्या को छूआ तक नहीं। इसके बजाय, उनका पूरा बजट भाषण अपने मुंह मियाँ मिट्ठू बनने की घिनौनी बड़ाइयों, संदिग्ध आंकड़ों का पुलिंदा और आर्थिक पुनरुद्धार और विकास के फर्जी दावों से भरा था। 'आत्मनिर्भर भारत' बनाने के नाम पर, स्वास्थ्य, शिक्षा, बीमा और बैंकों जैसे सामाजिक कल्याण और सेवा क्षेत्रों सहित लगभग सभी क्षेत्रों के पहले से भी ज्यादा तेजी से निजीकरण का एक पूर्ण रोडमैप चालू किया गया है।

संयोग से, सारे देशवासी तीन कृषि कानूनों और कृषि में कारपोरेट परस्त अन्य सुधारों के खिलाफ देश के अन्नदाता और आबादी के 70% से ज्यादा हिस्से किसानों के ऐतिहासिक आंदोलन को देख रहे हैं और तहेदिल से इसका समर्थन कर रहे हैं। इस आन्दोलन में अब तक 153 किसानों की बेशकीमती जानें कुर्बान हो चुकी हैं लेकिन वित्त मंत्री ने आंदोलन की जायज मांग के खिलाफ सरकार के निरंकुश स्टैंड को ध्यान में रखते हुए, उसके संदर्भ में कोई जिक्र तक करने से कन्नी काटी। इसके बजाए उन्होंने पिछले एक साल में किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के भुगतान के कुछ संदिग्ध आंकड़े दिए हैं  यह दिखावा करने के लिए कि किसानों के लिए उनकी सरकार ने कितना कुछ किया है, जबकि सभी लोग जानते हैं कि सरकार एमएसपी को कानूनी दर्जा देने की किसानों की मांग को स्वीकार करने से इंकार कर रही है। इस तथ्य के बावजूद कि मध्यम वर्गीय करदाता आसमान छूती महंगाई, घटती आय और गिरती बैंक ब्याज दरों की मार से पिस रहे हैं फिर भी, प्रत्यक्ष कर निर्धारण दरों में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है। इस प्रकार यह स्पष्ट कर दिया गया है कि यह सरकार देशी-विदेशी दोनों एकाधिकारी घरानों के वर्ग हितों को साधने के काम में पूरी तनदेही से जुटी हुई है, जिन्होंने ताजातरीन खुलासे के मुताबिक, महामारी के दौरान भी अपनी संपत्ति कई गुना बढ़ा ली है। इसलिए, 'आत्मनिर्भर भारत' वास्तव में "कॉर्रपोरेट-निर्भर भारत' के लिए एक प्रियोक्ति साबित हुआ है।

हम ऐसे जनविरोधी बजट की पुरजोर निंदा करते हैं जो जनजीवन में संकट के इस मुश्किल दौर में पूंजीपति वर्ग के निर्देश पर तैयार किया गया स्पष्ट गोचर है और बीजेपी सरकार के इस विश्वासघातपूर्ण और निराशाजनक दृष्टिकोण व रवैये के खिलाफ संघर्ष गठित करने के लिए शोषित-पीड़ित देशवासियों का पुरजोर आह्वान करते हैं।

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